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राजलक्ष्मी ने मेरे पैरों पर हाथ रखकर कहा, “अब कभी न होगा, सिर्फ अबकी बार खुशी मन से मुझे हुक्म दे दो।” मैंने कहा, “अच्छा। लेकिन तड़के ही शायद तुम्हें जाना ...